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हसरतें

Aug 13

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भाग २

"कौन है दरवाज़े पर ?" अवस्थी साहब ने अपने नौकर राजू से पूछा।

"कूरियर वाला है साहेब" राजू बोला।

"किसने भेजा है और क्या है उस कूरियर में "

"इसपर नाम तो नहीं लिखा साहेब, पर मालूम पड़ता है कुछ कागज़ है इसमें "

"खोलकर देख उसे क्या कागज़ है "अवस्थी साहब थोड़े उखड़े हुए बोले।

"जी साहेब "राजू ने हामी में सिर हिलाते हुए कहा।

"किसी की कोई लिखी कहानी मालूम पड़ती है साहेब, लिखा है "उम्मीद है ये कहानी आपको एक अच्छी फिल्म का आधार देगी " "आपकी प्रशंसक।

"लो अब इतने बुरे दिन आ गए की लोग हमें कहानी भेजकर तमाचा मार रहे, लाओ इधर और पढ़के सुनाओ तो सही क्या लिखा है " अवस्थी साहेब रुआंसे स्वर में बोले।

अथिकान्त अवस्थी यु तो बॉलीवुड के जाने माने लेखक, निर्माता और निर्देशक थे जो अधिकतर लव स्टोरीज पर फिल्मे बनाते थे।  पर कुछ सालो से लोगो के साउथ फिल्मो के प्रति अधिक रुझान के कारण उनको फिल्मो से काफी नुक्सान हो रहा था।  इसी कारण उनका स्वाभाव थोड़ा उखड़ा सा हो गया था ।

राजू ने कहानी पढ़ना शुरू किया।

"किसी के पास टैक्स के अमेंडमेंटस की किताब है" उसने (विजय) ने यह मैसेज अपने अन्य  CA  के विद्यार्थीओ  के व्हाट्सप्प ग्रुप में साझा  किया जिसमे मै भी शामिल थी ।

"मेरे पास है, अगर तुझे चाहिए तो ले जा" मैंने विजय को उसके नंबर पर मैसेज करके कहा।

मै, जिसे वो दिलो जान से भुलाने की कोशिश कर रहा था, मेरा एक मैसेज विजय के दिल में एक उम्मीद भरा घाव दे रहा था।  एका एक मेरे साथ बिताये सारे पल उसकी नज़रो के सामने आ गए और उसकी आँखों में नमी भर गयी।

हमारे CA फाइनल के इम्तिहान लग भाग तीन महीनो बाद थे , और ये इम्तिहान उसके लिए काफी माईने रखते थे।  एक गरीब घर से होने के कारण वो अपने परिवार को एक अच्छे भविष्य की सौगात देने की इक्छा रखता था।  मेरे से दूर रहने की भी यही एक बड़ी वजह थी क्युकी

वो नहीं चाहता था की मेरे को उसके साथ रहने के लिए किसी भी चीज़ से समझोत्ता करना पड़े। अतः उसने अपने मन को समझाते हुए अपने मन में उठने वाले हर गुबार को अपनी जिम्मेदारियों और सपनो के निचे दबा दिया।

आज दिन 07 नवंबर था, और हमारा चौथा पेपर वह मेरे पीछे पीछे एग्जामिनेशन सेंटर से बाहर आ गया, उसके चेहरे पर कुछ कहने के भाव देख सकती थी मैं, पर कुछ संकोच उसको बांधे हुए था।  सेंटर के बाहर मेरे पापा मेरा इंतज़ार कर रहे थे शायद इस लिए भी वो कुछ कहने से झिझक रहा था। अतः मैं अपने पापा के साथ गाड़ी में बैठी, अभी गाड़ी चली ही थी की अचानक उसका फ़ोन आ गया।

"तू चली गयी क्या, अभी तो सामने ही थी , कहा है तू , कल तेरा बर्थडे है न तुझे मिल कर विश करना था "उसने एक ही सांस में हरबराते हुए सब कुछ कह दिया।

"मैं तो निकल आयी, तुझे कैसे पता की कल मेरा बर्थडे है " मैंने अपनी ख़ुशी को अपने भावो में छुपाते हुए पूछा।

"बस पता है तुझे याद नहीं पर तूने ही बताया था, चल हैप्पी बर्थडे और हां सॉरी " उसकी बातों में वो भाव एक अनंत सुकून का एहसास दे रहे थे। पर मैं आज तक उसके उस सॉरी का कारण नहीं जान पायी थी, शायद उसे लग रहा था की उसका मुझसे यु बात करना मुझे अच्छा नहीं लग रहा था ।

उसके बाद हर पेपर में वो मुझे देखता और मैं उसे पर न वो कुछ कहता और न मैं।

एक पेपर में उसने बात करने की कोशिश की उसने मुझसे पर किसी कारण बात न हो सकी।

अभी पेपर ख़तम हुए तीन दिन ही हुए थे की मुझे उसका फ़ोन आया। 

" तेरा कोई बॉयफ्रेंड या क्रश ऐसा कुछ है क्या ?' ऐसे सीधा फ़ोन करके कौन पूछता है भला मैं कुछ समझ नहीं पायी बस उसे उल्टा सवाल पूछ लिया।

"तू जानकार क्या करेगा "

"तू बता ना बस हां या ना " वो यही सवाल बार बार दोहरा रहा था।

"हां है " मैंने कुछ संकोच करके उसे बोल दिया दिया।

"चल ठीक है सॉरी फिर अब तुझे डिस्टर्ब नहीं करूँगा। " उसने इतना कह कर फ़ोन काट दिया।  मैं कुछ समझ नहीं पा रही थी , मैं क्या कोई भी उसकी बातों का मतलब शायद ही समझ पाए।  हमारा दस पंद्रह दिनों का ही मिलना हुआ होगा शायद पर वो बातें यु करता था मानो बरसो से साथ थी मैं उसके।

उसके बाद हमारे CA फाइनल  का रिजल्ट आया, मैं फेल हो गयी थी , पर कही से मालुम पड़ा की वो पास हो गया था।  मुझे दिल से खुदके फेल होने के गम से ज्यादा उसके पास होने की ख़ुशी थी , नहीं जानती की मेरा ये महसूस करना किस हद तक सही था, पर अब अपने मन पर कौन ही काबू कर सकता है।

मुझे लगा शायद उसका कोई मैसेज आएगा, पर नहीं आया।  मैं यह सोचकर उसे मैसेज या फ़ोन नहीं कर रही थी की वो फिर उन भावनाओ में दब जाएगा जिनसे वो निकलना चाहता है और मै उससे बस एक दोस्ती चाहती थी उसके आगे उसके साथ जाने का मेरे मन में कोई ख्याल नहीं था ।  मैं जानती थी की मेरा और उसका कोई भविष्य नहीं है, किउकी मेरे पापा मेरी शादी एक बड़े और अमीर घर में करना चाहते थे और मेरी भी यही इक्छा थी। बस यही सब सोचकर मैं उससे दूर रहने और कम बात करने की कोशिश करती थी ।

आज अचानक रिजल्ट के एक महीने बाद उसका मैसेज आया।

"कैसा रहा रिजल्ट "

"मै फेल हो गयी तेरा कैसा रहा बन गया तू CA " उसके पास होने की खबर जानते हुए भी मैंने अनजाने से होकर पूछा।

"कितने मार्क्स आये तेरे " उसने उल्टा सवाल पूछा उसकी यही बात मुझे चिढ देती थी वो बस वही बात करता था जो उसके दिमाग में हो मेरी किसी भी बात का वो सही से जवाब नहीं देता था , उसे उसके हर सवाल  का  जवाब चाहिए था पर मेरे किसी भी सवाल का वो जवाब नहीं देता था। 

अतः कुछ देर तक उससे फ़ोन पर बहस करने के बाद मैंने गुस्से से उसका नंबर व्हाट्सप्प पर ब्लॉक कर दिया।

उस दिन उसने मुझे पचास से साठ बार कॉल किया पर नंबर ब्लॉक करने के कारण मुझे उसका एक भी कॉल नहीं दिखा। ये उसकी पुरानी आदत थी, अब अच्छी है या बुरी नहीं जानती पर उसे अगर किसी से बात करनी हो तो वो तब तक कॉल करता है जब तक अगला फ़ोन उठा न ले या उसे ब्लॉक ना कर दे।

कुछ दिनों बाद मालूम पड़ा की वो किसी बड़े शहर में जाकर बैंक में नौकरी करने लग गया है , CA  था  तो कैंपस से ही प्लेसमेंट हुआ था उसका।

ये जानकर मन को दिलासा मिला चलो अब वो अपने सपनो की तरफ बढ़ लिया है। इस बीच उसने मुझसे बहुत तरीको से सम्पर्क करने की कोशिश भी की पर मैंने हर बार टाल दिया।  रोज़ दिन में 3  से 4 मुझे फोन करता मुझे ये जानते हुए भी की मैंने उसका नंबर ब्लॉक किया है ना जाने ऐसा क्या ही देखता होगा वो मुझमे।

खैर आज मेरा ca फाइनल का रिजल्ट आया था और मै पास हो गयी, अपनी सफलता की बहुत ख़ुशी हुई मुझे भी। आज सारा दिन घर में बधाईओं का ताँता लगा था, न जाने कैसे पर आज दिन बहुत जल्दी बीत गया था।  पर रात का वो अँधेरा अपने साथ काफी सपने ला रहा था, ख़ुशी तो बहुत थी मुझे पास होने की पर आज उससे बात करने का ना जाने क्यू पर बहुत मन कर रहा था। मैंने बगल में पड़े फ़ोन को उठाकर कॉल डिटेल्स देखी, आश्चर्य की बात थी जो आदमी मुझे बिना मतलब के रोज़ यु ही मेरे ब्लॉक नंबर पर 4 - 5  कॉल लगा लेता था, मेरे इतने बड़े दिन पे एक भी फ़ोन नहीं  किया उसने।  उसके साथ बिताये वक़्त को याद करके और उससे खफा होने के भाव के साथ न जाने आँखों में नींद कब आ गयी।

"हेलो , कौन, हेलो , हेलो , कौन है "  मै फ़ोन उठाकर बोली।

फ़ोन कट , कुछ देर बाद यु ही घर से बाहर निकली, तो  निगाहों के सामने उसका चेहरा था।  एक पल को तो आँखों को यकीन न हुआ और उसी  एक पल में उसके साथ का हर लम्हा आँखों के सामने आ गया, उसकी आँखों में नमी साफ़ देख सकती थी मै।  बेसुध हुआ मेरा शरीर मेरे काबू में ना रहा, मेरे क़दम अपने आप उसके क़रीब जाने लगे , जो क़दम उसके क़रीब जाकर थम जाते थे आज नहीं थमे सीधा उसके सीने लग गयी जाकर। उसके सीने से लग कर जो सुकून मिला उसके बाद तो मानो किसी और सुकून की कामना ना थी मुझे बस यु ही सारी ज़िन्दगी उसके सीने से लग कर सोने की इक्छा थी मेरी।

"कल तेरा जन्मदिन है न उसके लिए हैप्पी बर्थडे "उसने धीमी सी  आवाज़ में मेरे कान के समीप कहा।

उसके शब्दों ने मुझे एकदम सुध सी दी, न चाहते हुए भी उसको खुद से दूर धकेलते हुए मै अपने मन पर काबू करने की कोशिश करने लगी।

"ये क्या तरीका है, तू यहाँ क्या कर रहा है, तू मेरा फायदा उठाना चाहता ना, देख तेरा मेरा कोई मेल नहीं और आईन्दा अगर तूने मुझसे मिलने की कोशिश की या मुझे तंग करने की कोशिश की तो मै पुलिस में तेरी कम्प्लेन कर दूंगी" एक सांस में इतना कुछ कह गयी मै, सच में मन पे काबू छोड़ दिया था मैंन।

वो कुछ नहीं बोला, बस मुस्कुरा रहा था।  जाते हुई बस एक सॉरी बोल गया , शायद मेरी आँखों में नमी देख ली थी उसने , इसमें भी शायद क्या लगाना नमी तो देख ही ली होगी उसने, हमेशा मेरी आँखों में ही तो देखता था वो।

उस घटना के लगभग चार महीने बाद मेरे घर में लड़के वाले मुझे देखने आये।  लड़का देखने में काफी सुन्दर था, CA किया था उसने भी और उसके पापा का खुद मार्बल्स का एक बड़ा बिज़नेस था। कोई कमी न थी उस रिश्ते में , मैंने भी अपने पापा की हां में हां मिलाते हुए रिश्ते को स्वीकार लिए और मै खुश थी की मुझे इतना अच्छा रिश्ता मिला है।

पर ये ख़ुशी ज्यादा देर रह ना सकी।

"कैसा है विजय " आरती (विजय और मेरी पुराणी दोस्त ) ने विजय को फोन पर पूछा।

"बस बढ़िया , आप कैसे हो और कैसे याद किया मुझे " विजय बोला।

"एक बात जानता है कल आरोही का एक्सीडेंट हो गया , ICU में है वो "

"हेलो, हेलो विजय सुन रहा है ना "।

 

"ये कहानी यही ख़तम नहीं हो सकती" राजू के कुछ शनो तक कुछ न बोलने पर अवस्थी साहब ने कहा।

"मालिक एक और लिफाफा है इसमें " राजू। 




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