top of page

काश वो पलट कर ना देखती तो कुछ बेहतर होता !!

Aug 6

9 min read

2

8

0


भाग १



"मेरा नाम विजय है, मैं सिवाय गांव में रहता हूँ"

"बस इतना ही, तुम्हारी CA  फाइनल की परीक्षा कब है, ये भी बताओ " ट्रेनर ने विजय से कहा। 

"जी वैसे तो इसी साल नवंबर में है पर मैं दे पाउँगा नहीं  यह नहीं कह सकता" विजय ने बड़ी निम्रता से कहा। 

विजय अपने CA ट्रेनिंग के जरूरी 15 दिनों की एडवांस आईटी की ट्रेनिंग को अटेंड करने के लिए रोज़ अपने गाँव सिवाय से 35 किलोमीटर दूर जाधर शहर में आता था।  वैसे ट्रेनिंग न भी होती तो भी वह  अपने CA की आर्टिकलशिप  की ट्रेनिंग करने के रोज़  लिए जाधर शहर आता था। 

वो एक लोअर क्लास फॅमिली से थ। घर खर्च में सहयोग करने  के लिए वह अपनी ÇA की ट्रेनिंग को जॉब की तरह करता था जिस वजह से उसे थोड़े अधिक पैसे मिलते थे वो उन पैसो को घर खर्च के लिए दे देता था।  आज उसकी CA कोर्स के दौरान होने वाली 15 दिनों की एडवांस आईटी की ट्रेनिंग का पहला दिन है। वो बाकी बच्चो से थोड़ा हटकर अलग बैठा था ,ये नहीं था की उसे लोगो से घुलना मिलना पसंद नहीं था बस वह  नए दोस्त बनाने से कतराता था।

घडी में 10 बजकर 15 मिनट हो रहे थे , कुछ बच्चे अभी भी नहीं आये थे। कुल 22 बच्चो में से क्लास में अभी 16 ही थे। 

अचानक "मे आई कम इन्" की आवाज़ आयी , एक लड़की जिसके कंधे पर स्टूडेंट बैग के नाम पर एक छोटा सा बस्ता था , जिसमे बड़ी मशकत करने पर भी शायद ही दो किताबे आए, ने ट्रेनर से अंदर आने की अनुमति ली और अंदर आते ही विजय के बगल की खाली सीट पर बैठ गयी।

विजय जो अपने फ़ोन पर स्टॉक मार्किट देखने में व्यस्त था, उसे इस बात का अंदेशा तब तक ना हुआ जब तक उस लड़की ( आरोही)

ने उसे क्लास में उसके आने से पहले हुए विषयों के बारे में पूछ। 

"कुछ नहीं अभी तक तो मैडम ने बस हमसे सेल्फ इंट्रोडक्शन ही लिया है, कुछ ख़ास नहीं कराया "।  इतना कह कर विजय पुनः अपने फ़ोन में  व्यस्त हो गया।

आरोही जो की मिडिल क्लास फॅमिली से थी , एक चंचल, साफ़ मन की खुले दिल वाली लड़की थी उसका घर जाधर में ही था।

वो लग भाग हर एक सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर मौजूद थी।

जैसे जैसे क्लास आगे बढ़ रही थी आरोही विजय से किसी न किसी विषय पर बात करती जा रही थी , विजय ना चाहते हुए भी उसे बोलने से मना नहीं कर पा रहा था , वह आरोही के हर लम्बे से सवाल दो से तीन शब्दों में संछिप्त उत्तर दे देता।  फिर 15 मिनट की टी ब्रेक का वक़्त हुआ आरोही अपने साथ कुछ फ्रूट्स लेकर आयी थी , उसने विजय से उनमे कुछ खाने के लिए पूछा विजय ने पहले तो थोड़ा संकोच किया फिर यह सोचकर की उसे बुरा ना लगे उसमे से एक सेब का टुकड़ा उठा लिया और आरोही को शुक्रिया कह कर उससे थोड़ी दुर जाकर बैठ गया, आज पहली बार विजय ने किसी गैर लड़की से इतनी बात की थी , ये नहीं था की विजय लड़कियों से बात नहीं करता था बस वो इन लड़की के चक्रों से दूर रह कर अपने करियर पर फोकस करना चाहता था ता की वो अपनी माँ और बहन का अच्छे से ख्याल रख सखे , और वो जानता था की अगर उसकी जिंदगी में कोई लड़की आयी तो ना चाहते हुए भी वो अपने करियर से भटक जाएगा।

कुछ देर बाद क्लास फिर से शुरू हुयी, आरोही ट्रेनर के हर टास्क को विजय के साथ मिलकर उसी के कंप्यूटर पर कर रही थी।  इसलिए वो अपने हर संशय को बार बार विजय से पूछती और ना चाहते भी विजय उसे बढे ही प्यार से उसके सवालों का जवाब देने की कोशिश करता

विजय जल्दी छुट्टी लेकर अपने आर्टिकलशिप ट्रेनिंग पर जाना चाहता था क्योकि उससे वहां लगाए जाने वाले हर घंटे के पैसे मिलते थे इसलिए  उसने ट्रेनिंग इंचार्ज से जल्दी जाने की आज्ञा मांगी , पर ट्रेनिंग इंचार्ज ने उसे मना कर दिया ,अतः वह पुनः आरोही के बगल में आकर बैठ गया

अब शाम के 3 बज कर 30  मिनट हो रहे थे , ट्रेनिंग क्लास ख़तम हुई विजय जल्दी से उठा और बाहर ऑटो वाले को ढूंढ़ने लगा , और वह ऑटो पकड़ कर अपने ऑफिस की तरफ चल दिया।

आज ट्रेनिंग से ऑफिस और फिर घर आने की भगदड़ में विजय काफी थक चूका था इसलिए वो घर आते ही खाना खाकर सोने चला गया,

पर यह क्या जो विजय लेटते ही 5 मिनट में गहरी नींद में चला जाता था , उसे नींद ही नहीं आ रही थी बस दिन भर आरोही की कही बाते उसके दिमाग में घूम रही थी , वो उन्हें सोचकर ही मुस्कुराने लगा।  

 

जिस विजय का पहले दिन यह सोचकर एडवांस आईटी की ट्रेनिंग जाने का मन था की वहाँ जाने की वजह से उसकी आर्टिकलशिप ट्रेनिंग के पैसे कटते थे ,वह आज वहाँ जाने को थोड़ा बेताब था। अपनी आदत के हिसाब से वह सबसे पहले 9 बजकर ०5 मिनट पर ही ट्रेनिंग सेंटर पहुँच गया , वहाँ जाकर वह अपने फ़ोन पर शेयर मार्किट की ट्रेडिंग कर रहा था, धीरे धीरे बाकी सभी बच्चे भी आ गए , और अंत में विजय की आँखें जिसका इन्तिज़ार कर रही थी वह भी यानी आरोही। विजय को उम्मीद तो नहीं थी पर एक इक्छा हुई की काश आज आरोही फिर उसी के साथ बैठे , हुआ भी कुछ ऐसा ही आरोही ने ना इधर देखा न उधर बस विजय के बगल की सीट पर आकर बैठ गयी, उसने विजय से हाथ मिलाने के लिए हाथ आगे बढ़ाया पर विजय ने हाथ मिलाने से मना कर दिया, यह विजय की आदत थी वोह किसी भी लड़की से हाथ मिलाने से झिझक रखता था , आरोही को थोड़ा बुरा लगा पर उसने मज़ाक में टाल दिया।  आज विजय के दूसरी तरफ भी दो लड़किया(आरती और सलेजा) बैठी थी, विजय को कुछ समझ ना आने पर वह उनसे बीच बीच में कुछ न कुछ पूछ लेता , और जल्द ही आरोही भी उन दोनों लड़कियों के साथ घुल मिल गयी।  अब रोज़ ही विजय , सलेजा, आरोही और आरती एक साथ बैठते थे। और विजय अब रोज़ शाम को ट्रेनिंग में हुई साड़ी दिनचर्या का विवरण ख़ास कर जो आरोही से जुड़ी हुई थी अपने साथ काम कर रहे साथियो को बड़ी ख़ुशी से बताता था, उसके साथी भी उसकी जुबान पर आरोही का नाम आने की ख़ुशी को देखकर उस पर तंज कसा करते, और विजय भी मुस्कुरा कर उनकी बातो को अनसुना कर देता।

" एक बार आरोही को फ़ोन लगाओ न, अभी तक नहीं आयी, रोज़ तो साढ़े दस बजे तक आ जाती है " विजय ने आरती से बढे उतावले पण के साथ कहा। 

"नहीं उठा रही" आरती ने एक बार फ़ोन लगाने के बाद कहा। 

"आप कोशिश करते रहना जब तक उठा न ले"  विजय ने उदास मन से कहा। 

और फिर खुद भी भारी मन से आरोही को 5-6 बार फ़ोन किया, यह विजय की  जिंदगी में पहली बार था की उसने किसी लड़की को बीना काम के फ़ोन किया हो। 

जो दिन 4-5 दिनों से विजय को क्षण भर का लगता था आज उसका हर एक पल उसे सदियों के बराबर लग रहा था , उसने 10-15 कॉल किए आरोही को पर उसने फ़ोन नहीं उठाया  विजय को मन ही मन चिंता भी हो रही थी की ऐसा क्या हो गया की आरोही फ़ोन नहीं उठा रही, उसके मन में बहुत गलत गलत ख्याल आने लगे , उसने आज दोपहर का खाना भी नहीं खाया बस चुप चाप ट्रेनिंग वाली बिल्डिंग की छत पर जाकर आरोही की बारे में सोचने लगा, कुछ देर बाद आरती और बाकी कुछ बच्चे भी ऊपर आये।

विजय के फ़ोन की घंटी बजी , उसने झट से फ़ोन उठाया। 

"कहाँ है तू , ठीक है ना, अभी तक आयी क्यू नहीं, आज आएगी ना, तुझे कुछ हुआ तो नहीं , फ़ोन क्यू नहीं उठा रही थी " विजय ने एक ही सांस में इतने सारे सवाल पूछ डाले। आज पहली बार विजय ने किसी लड़की को तू कहकर पुकारा था नहीं तो वोह हमेशा लड़कियों को आप कहकर ही बुलाता था। 

"मैं ठीक हूँ, घर पर ही हूँ , थोड़ा धुप सेक रही थी और फ़ोन रूम में था इसलिए पता नहीं चला , पर 24 कॉल्स कौन करता है , कोई जरूरी काम था क्या " आरोही ने अपने चंचल में विजय को उत्तर देते हुए एक और सवाल पूछ लिया। 

"तू झूठ बोल रही तूने जान बूझकर फ़ोन नहीं उठाया और मैं सोचकर परेशान हो रहा था की पता नहीं क्या हो गया इसे कही किसी गाडी से एक्सीडेंट ना हो गया हो और तू  तो सारा दिन ऑनलाइन रहती तो फ़ोन कैसे नहीं देखा" विजय के मन में जो आ रहा था वो वही बोल रहा था आज उसका दिमाग उसकी जुबान पर कण्ट्रोल खो चूका था।

उसने काफी देर तक आरोही को गुस्से भरे लहजे में बहुत कुछ सुनाया और फिर खुद ही गुस्से से फ़ोन काट दिया।

आज उसकी ट्रेनिंग क्लास में कोई रूचि नहीं थी अतः वो बिना ट्रेनर को बताये जल्दी ही निकल गया। उसकी आरोही से हुई बात  सारा दिन उसके दिमाग में घूमती रही। अब वह यह सोचकर परेशान हो रहा था के ये उसे क्या हो गया है, वह किसी लड़की से ऐसे कैसे बात कर सकता है और खुद पर गुस्सा होने लगा।

सुबह हुई विजय ट्रेनिंग सेंटर में अपनी जगह पर सबसे पहले आकर बैठ गया , धीरे धीरे बाकी बच्चे भी आने लग।

जैसे जैसे बच्चे आ रहे थे विजय थोड़ा परेशान होने लगा ,उसे यह डर था की पिछले दिन जो उसकी आरोही से फ़ोन पर बात हुई उसके बाद शायद आरोही उसके साथ ना बैठे , यही सोचकर उसका मन उदास हो रहा था। 

इतने में सॉरी मैडम लेट हो गयी कहकर आरोही अंदर आ गयी , और हर दिन के जैसे ही अपने चंचल अंदाज़ में विजय के बगल में आकर बैठ गयी।

"क्या हो गया था तुझे कल, इतने फ़ोन कौन करता है यार , तूने तो डरा ही दिया था " आरोही ने चंचल स्वर में विजय की तरफ घूम कर कहा। 

"सॉरी " विजय ने इतना कह कर सिर निचे झुका लिया , और सारा दिन ख़ामोशी से आरोही के साथ ट्रेनर द्वारा दिए कार्यो को करने लगा ।

आरोही रोज़ एक प्राइवेट इ रिक्शा करके आया जाया करती थी, और विजय का ऑफिस उसके घर के रस्ते में ही पड़ता था, आज ना जाने विजय के  मन में क्या आया उसने आरोही के साथ ही उसके रिक्शा पर जाने की ज़िद कर दी और आरोही उसे भला मना कैसे कर पाती।  अतः विजय आज ट्रेनिंग के बाद आरोही के साथ ही चल दिया , मन तो उसका बहुत कुछ कहने का था पर क्या और कैसे कहे ये सोचकर वो खामोश था। "तुम्हारे उधर दहेज़ का रिवाज़ है " विजय ने अचानक से बिना कुछ सोचे ही पूछ लिया। 

"हां पर तू क्यू पूछ रहा है " आरोही जिसको ऐसे किसी सवाल की उम्मीद नहीं थी उसने आश्चर्यचकित होकर विजय से पूछा। 

"बस ऐसे ही , और अगर तेरी शादी होती है तो कितना दहेज़ देंगे तेरे घर वाले " आज विजय के सवाल वो खुद भी नहीं समझ पा रहा था बस जो मन में आ रहा था पूछ रहा था। 

"पता नहीं पर तू जान कर क्या करेगा " आरोही विजय के अजीबो गरीब सवाल का कोई सटीक जवाब न दे पायी । 

"मैं तेरे लिए लड़का ढूंढूंगा , जीरो दहेज़ पर , तेरे चेहरे की चंचलता और तेज़ देखकर मै कह सकता हु, तेरी ज़िन्दगी में राज योग लिखा है। "

विजय बिना कुछ सोचे बस कह रहा था। इतने में विजय का ऑफिस आ गया और वो आरोही को एक स्माइल के साथ निहारता हुआ अपने ऑफिस की तरफ चल दिया। 

आज पहली बार आरोही ने विजय को इस रूप में देखा था , पर ये उसे कुछ रास नहीं आया , वो विजय की इन बातो से थोड़ी खफ़ा हो गयी। पर इन सबके बावजूद विजय की इन बातों ने उसके मन में काफ़ी सवाल छोड़ दिए थे।  मन के इन सवालों का जवाब ढूँढना आरोही के लिए इस लिए अधिक मुश्किल था क्यू की वो अभी तक उन सवालो को ही नहीं समझ पायी थी। आज विजय भी सारा दिन बस खुद से आरोही को किये हुए सवालों के कारण पूछने लगा , इस तरह कैसे वो किसी लड़की से ऐसे सवाल पूछ सकता ये सोच सोच कर उसे शर्मिंदगी हो रही थी ।


 

अगले दिन लंच में सभी ट्रेनिंग के बच्चे पार्क की तरफ घूमने के लिए चले गए सिवाय विजय और उसके साथ दो  तीन लड़को को छोड़ कर।

विजय ने जब आरोही को इधर उधर देखने पर भी ना पाया तो उसने किसी अन्य लड़के से आरोही के विषय में पूछा , उस लड़के ने उसे बताया की आरोही भी बाकी बचो के साथ पार्क में गयी है। 

विजय भी बिना कुछ सोचे ही पार्क की ओर चल  दिया।

आरोही ने विजय को पार्क की तरफ आते देखा तो उसकी तरफ भागी हुई आयी और उसके बिलकुल पास  आकर रुक गयी। वह भी कुछ समझ नहीं पा रही थी की उसके कदम अपने आप कैसे विजय की तरफ चल आये, विजय की इतनी पास होने का एहसास उसे अच्छा तो लग रहा था पर इतने सारे बचो के सामने उसे थोड़ी शर्म आने लगी , अतः उसने झट से अपनी गर्दन को दूसरी तरफ घुमा लिया और बिना विजय से कुछ कहे दूसरी तरफ चल दी।

किसी को समझ नहीं आ रहा था की ये क्या हुआ , विजय भी उसे अपने इतनी पास आकर मुरता हुआ  देख  कर कुछ समझ ना सका। 

खुद आरोही भी ये सोचकर बार बार परेशन हो रही थी की उसे क्या हुआ वो ऐसे ही कैसे इतनी व्याकुल हो सकती है, उसका यु विजय की तरफ भाग कर जाने का क्या कारण था, पर अपने चंचल स्वाभाव के कारण कुछ देर तक सोचने के बाद उसने अपने ख्यालो को अनदेखा कर दिय।

उधर विजय जो अंदर ही अंदर आरोही से दिल तो लगा बैठा था  पर अभी खुद ही इस बात से अनजान था उसे आरोही का यु  उसके पास आकर मुरना  आरोही के दिल में उसके प्रति प्यार होने का एहसास करा रहा था। पर विजय यह भी जानता था उसका और आरोही का कोई भविष्य नहीं है इसलिए वो आरोही से अब दूर रहना चाहता था वो नहीं चाहता था की उसकी वजह से आरोही को किसी बात की तकलीफ हो।

 

" आरोही और विजय तुम अलग अलग  कंप्यूटर पर अपना काम करो " ट्रेनर संजय ने विजय और आरोही को सख्त स्वर में कहा।

" ठीक है सर " विजय ने हामी में जवाब दिया और आरोही से एक अलग कंप्यूटर पर अपना काम करने लगा।

" विजय तू जैसे जैसे करेगा मुझे भी बताते रहना " आरोही ने मुस्कुराते हुए विजय से कह।

"तू अपना खुद कर, तुझे सब आता है , ये नाटक मत किया कर" विजय के स्वर में थोड़ी तल्खी थी , उसकी जुबान से इतने कठोर शब्दों की कल्पना वहा किसी ने नहीं की थी , सब विजय की तरफ ही देख रहे थे। आरोही का मुस्कुराता हुआ चेहरा अचानक मुरझा गया। 

"विजय थोड़ा धीरे " आरती जो विजय के बगल में बैठी थी उसने विजय को समझाते हुए कहा। 

"आरोही  अगर कुछ समझ नहीं आग रहा तो हमारे पास आकर बैठ जाओ, मई बता दूंगा " रणजीत नाम के लड़का जो थोड़ी ही दूरी पर बैठा था उसने बड़े प्यार से आरोही से  कहा।

"थैंक यू , पर मै विजय के पास ही बैठूंगी " आरोही ने अपने चेहरे पर एक झूटी मुस्कराहट लाते हुए रणजीत से कहा। 

विजय जो की अपने कहे हुए शब्दों से खुद आहात था, आरोही के ये शब्द उसे अंदर ही अंदर रुला रहे थे , पर वह चाह कर भी किसी को अपने मन का हाल नहीं सुना सकता था।  उसने चुप चाप आरोही के हर प्रोजेक्ट को उसके साथ करवाया , पर उस दौरान उसने एक बार भी आरोही से बात करने की कोशिश नहीं की। 

आज विजय सारा दिन मन ही मन रो रहा था , और उसके ये आंसू रात को आँखों से गंगा के शांत प्रभा की तरह बह गए। आज के जमाने में जहा लोग किसी को अपशब्द कहने का अफ़सोस नहीं करते वहाँ ये अपने बस कुछ कठोर शब्दों से इतना विचलित हो गया , इसमें दोष बातो का नहीं जज्बातो का था , कौन से शब्द कहे जा रहे है आहत उससे ज्यादा ये शब्द किसे और किन हालातो में कहे जा कहे जा रहे है  उस पर निर्भर करता।  उधर आरोही भी मन ही मन अपनी गलती ढूंढ़ने में उलझी हुई थी उसे समझ ही नहीं आ रहा था ये सब अचानक से क्या हो गया , उसे सभी के सामने हुए अपमान से ज्यादा दुःख इस बात का था की वह अपमान उस आदमी ने किया जिसे वो , जिसे वो क्या ? ये सवाल उसके मन में बार बार आ रहा था , आखिर क्यू वो खुद को विजय के सामने इतना बेबस महसूस करती थी, आखिर क्यू वो उसको पलट कर जवाब नहीं दे पाती थी, क्यू अगर विजय को कोई कुछ कहे तो उसे दुःख होता था। बस यही आखिर क्यू के कितने ही सवाल उसे मन ही मन खा रहे थे , वो इसका जवाब भी जानती थी , पर मन को नहीं कह पा रही थी। 

" मैं नहीं कर सकता तू ही उसको फ़ोन कर, आज भी नहीं आएगी क्या, और हाँ उसे मत कहना की मैंने फ़ोन करने को कहा है " विजय ने आरती से कहा। 

" बात तो तू  उससे ढंग से करता नहीं है, पर फ़िक्र तुझे ऎसी हो रही मानो " आरती। 

"आपको नहीं करना फ़ोन तो रहने दो,  पर ऐसे उल्टा सीधा कुछ भी मत सोचो या कहो " विजय ने आरती के वाक्य को बीच में टोकते हुए ही कहा।

" ठीक है अब तो मैं नहीं ही करुँगी उसे फ़ोन" आरती भी गुस्से का झूठा सा मूह बनाते हुए बोली। 

इतने में बाहर से आरोही आती हुई दिखाई दी, विजय के चेहरे में मानो सदी की सबसे बेहतरीन ख़ुशी झलक रही थी।  इतने में आज फिर आरोही ने कुछ सोचकर हाथ मिलाने के लिए विजय की तरफ आगे बढ़ाया पर विजय ने उसे नमस्ते कह कर टाल दिया , माहौल फिर रूवांसा हो गया,  पर फिर आरोही ने उसे मुस्कुराते हुए नमस्ते कहा और उसके बगल में बैठ गयी , मन दुखी तो हुआ उसका पर जो दुःख दिखता है वो खुद के साथ साथ अपनों को भी तकलीफ देता है बस यही सोचकर आरोही मुस्कुराती रहती थी। 

आज फिर दोपहर के वक़्त लगभग सभी बच्चे पार्क की तरफ गए,  बस विजय और कुछ बच्चों को छोड़ कर। सीरत नाम की एक लड़की भी इन्ही के साथ ट्रेनिंग में थी , वो भी पार्क में नहीं गयी थी और हभेशा ही वह सबसे अलग बैठी रहती और सबसे काम बोलती थी।  विजय को यु किसी का सबसे अलग रहना अच्छा नहीं लगता था इसलिए उसने जब उसे भी अकेला देखा तो उसे भी पार्क जाने के लिए कहने लगा, विजय के बार बार कहने पर वो लड़की पार्क जाने के लिए त्यार हो गयी।  पर विजय उस लड़की के साथ उसी पार्क में गया जहा आरोही और बाकी विद्यार्थी थे।  पर ये क्या विजय को सीरत के साथ देखते ही आरोही का मन विचलित हो गया एक ठेस सी उठ रही थी उसके मन में जिसका कारण वो जानती तो थी पर मानने को त्यार नहीं थी। अब हमे चलना चाहिए आरोही ने बाकी विद्यार्थियों से कहा , वो अब और बर्दाश्त नहीं कर कर पा रही थी की विजय किसी और लड़की के साथ पार्क आया है , कहने को तो ये छोटी सी बात थी पर जब आप उन हालातो में होते है आप तभी जान सकते हैं की ये छोटी बातें भी इंसान के दिल को आहत करने के लिए किसी तेज़ हतियार से काम नहीं थे। 

इन सब के बीच एक बात ये भी हुई की सीरत भी विजय को अपना दिल हार बैठी थी , वो सबसे ज्यादा उसी से बात करती और अधिक से अधिक वक़्त उसी के साथ बिताना चाहती थी , विजय को सीरत के प्रति लगाव नहीं था पर सीरत को बुरा ना लगे इसलिए वो हमेशा उसके लिए खुद को हाज़िर रखता।  विजय भी यह जानता था की सीरत उसे पसंद करने लगी है , पर विजय की सीरत में कोई रूचि नहीं थी और वो उसे आहत भी नहीं करना चाहता था , इसलिए बस इतना सोचकर की कुछ दिनों की ही बात है वो सीरत को कुछ नहीं कहता था। 

"कितनी अजीब बात है ना आरोही हम जिसे चाहते है हम उनके साथ रह नहीं सकते , और जो हमें चाहते है हम उनके साथ रहना नहीं चाहते " विजय ने आरोही और सीरत को सोचकर ये बात आरोही से कही।  आरोही इन बातों के लिए त्यार नहीं थी उसे समझ ही नहीं आ रहा था की वो क्या कहे , वो सोचने लगी शायद विजय को समझ लग गया है की वो उससे प्यार करने लगी है पर विजय किसी और से प्यार करता है और शायद इसी वजह से विजय उससे उखड़कर बात कर रहा है। इतना सोचकर आरोही ने बस हामी में सर हिलाया और चुप चाप बैठ गयी। 

 

अब ट्रेनिंग ख़तम होने में बस दो दिन बाकी थे।  ये बात सोचकर ही विजय की आँखें नम हो रही थी क्या वो दुबारा कभी आरोही से मिल पायेगा। जिस ट्रेनिंग के कंपल्सरी होने के लिए विजय ICAI संस्था को गाली देता था आज वही ट्रेनिंग उसकी जिंदगी के सबसे खूबसूरत पल लिख रही थी |

अगला दिन

आज विजय ने दोपहर का खाना नहीं खाया वो सीधा बिल्डिंग की छत पर चला गया, उसे वहाँ से दिखता हुआ द्रिश्य काफी अच्छा लगता था और उसे उधर शांति महसूस होती थी। अचानक आरोही अपनी एक दोस्त के साथ छत पर आ पहुंची, विजय (जो दूसरी बिल्डिंग की छत पर था ) को देखते ही उसके कदम उसकी तरफ तेज़ी से चल दिए उसने बीच में आती एक छोटी पर खतरनाक दायरे को झट से पार किया और एक दम विजय के बहुत करीब आकर रुक गयी , आज फिर उसके कदम उसके बस में नहीं थ। 

"पागल है तू। " विजय ने झलाकर आरोही से कहा। 

किसलिए कहा ये सब समझ तो रहे थे पर कोई जिक्र नहीं कर कर रहा था। 

"जा जाकर छत के किनारे जाकर नीचे देख तुझे अच्छा लगेगा" विजय ने बात पलटते हुए झूठे मूठे मज़ाक़िआ अंदाज़ में कहा। 

"फुदू दिखती हु मै तुझे "आरोही ने हस्ते हुए कहा। 

" फिर वह तेज़ी से मुरकर जाने लगी, आते वक़्त तो उसके कदमो ने विजय के प्रति खिचाव के कारण हर दायरे को पार कर लिया पर अब . जाते वक़्त आरोही वो छोटे से दायरे को पार नहीं कर पा रही थी।

वो जगह जो दोनों बिल्डिंग की छत के बीच की दिवार थी थोड़ी खतरनाक जगह पर थी ,विजय ने आरोही को डाँट कर पीछे हटने को कहा और फिर खुद खतरनाक मोड़ पर खड़े होकर आरोही को दिवार पार करने को कहा।  आरोही ने चुप चाप एक हाथ दिवार पर और एक विजय की छाती पर दिल के क़रीब रखा, और दिवार पार कर ली और बिना इधर उधर देखे निचे की तरफ चल दी।  आरोही का रखा वो हाथ आज भी विजय को उसके करीब होने का एहसास दिलाता है |

आज ट्रेनिंग का आखरी दिन है, विजय एक झूठी सी मुस्कान चेहरे पे लिए आरोही के साथ ट्रेनिंग रूम में सारा दिन बिना कुछ बोले बैठा रहा , उसे लग रहा था की शायद अगर उसने आरोही से थोड़ी भी बात करने की कोशिश की तो शायद वो आज खुद को रोक नहीं पायेगा।  यही सोचकर वो आज सारा दिन बस आरोही को निहार रहा था बिना कुछ बोले।

" ठीक है मै अभी निकल जाती हूँ "  आरोही ने किसी को फ़ोन पर कहा।

विजय इस बात को सुन कर स्तब्धःरह गया एक तो आखरी दिन और उसमे में भी दो घंटे और कम।  पर वो लाचार था कहे भी क्या , दिल में तो वो भी जानता था की उसका और आरोही का कोई भविष्य नहीं है, पर मन को कैसे समझाए वो तो उसके काबू में ही नहीं आ रहा था।

आरोही के निकलने का वक़्त आया वो बिना विजय की तरफ देखे ही चलने को तैयार हो गयी शायद उसे लगा की विजय उसे आखरी बार तो रोकेगा , पर विजय तो मानो  रोते हुए दिल को मुस्कुराते हुए चेहरे में ढकने की कला हासिल कर चुका था , उसने एक बार भी आरोही से बात करने या उसके जल्दी जाने की वजह जान ने की कोशिश नहीं की।  हार कर जब आरोही को लगा की शायद विजय अब उसे नहीं बुलाएगा वो मुड़ी उसने नम आँखों से विजय की तरफ देखा , उसे लगा की विजय शायद उसे देख कर कुछ कहेगा , पर विजय तो चेहरे पर झूटी मुस्कराहट से रुआंसा चेहरा ढकने में वयसत था या शायद उसे लग रहा था की कही अगर उसने कुछ कहा तो वो खुद के जज्बातों को रोक नहीं पाएगा। विजय से कोई प्रतिक्रया न मिलने पर आरोही तेज़ कदमो से अपने राह की ओर चल दी। शायद ज़िन्दगी में उसे इतने जज़्बाती दुःखो का अनुभव कभी नहीं हुआ था , अब विजय को चाहते हुए भी वो दुबारा उस दर्द को महसूस नहीं करना चाहती थी अतः उसने विजय से कभी संपर्क नहीं करने का निर्णय ले लिया।

आरोही तो अपने राह की ओर चल दी थी पर विजय अभी भी उसके जाने का दृश्य आँखों से हटा नहीं पा रहा था।

"काश वो पलट कर ना देखती तो कुछ बेहतर होता " ये आखरी अलफ़ाज़ विजय ने खुद से कहे और आरोही के साथ बिताये पलो की यादो में खो गया। 


If you think that this story deserves a video chance, contribute your part by paying at below scanner.


Initiation date : August 08, 2024

Required amount : 1,25,00,000.00

Current amount : 3,380.0

Comments

Share Your ThoughtsBe the first to write a comment.
bottom of page